मिठाइयों की लड़ाई

मैंने सपने में आज कुछ ऐसा देखा की कैसे बताऊँ! बताते-बताते मुँह में पानी आ रहा हैं। मैंने देखा कि मैं एक बहुत बड़ी मिठाई की दुकान में खड़ी हूँ और मिठाइयाँ आपस में ही लड़ रही हैं। हर मिठाई मुझे अपने पास बुला रही है। दुकान में रंग और स्वाद बिखरा पड़ा था, मैं कन्फ़्यूज़ हिरनी सी लालायित नज़रों से सबको देख रही थी। तभी मुझे पीली-पीली केसर में डूबी ठंडी-ठंडी रसमलाई और छोटे-बड़े सफ़ेद गोलमटोल रसगुल्लों ने अपने पास बुलाया। पास जा ही रही थी की तभी गर्मा-गरम तमतमाते ग़ुलाब जामुन ने आँखो से मुझे इशारा किया। दूसरी तरफ चाँदी का ताज़ पहने काजू कतली और बर्फ़ी ने बड़े ही attitude से मुझे देखा। जलेबी तो सचमुच टेढ़ी है भाई, गुस्से से अकड़ कर मेरी तरफ़ देखकर बोली, “टेढ़ी हूँ पर तेरी हूँ। मेरे पास आजा, तेरा अंतरमन मीठा कर दूंगी।” मैं जैसे ही उसकी तरफ बढ़ी, उसी समय गोल-गोल मोतीचूर का लड्डू सामने आकर खड़ा हो गया और हँसकर बोला, “कहाँ चली? तेरी शादी में भी मैं आया था, पहली पूजा भी मुझसे ही शुरू हुई थी। अब तो तुम खुद भी मेरे जैसी दिखने लगी हो।” पहचान ही नहीं पाया, कहकर ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगा। उसी हँसी से मेरी आँख खुल गयी, और मेरा मीठा सपना टूट गया। खुद को व्यवस्थित कर के रसोई में पहुँची। वहाँ गुलाब जामुन तो नहीं, बल्कि काले-काले जामुन मुझे चिढ़ा रहे थे, और कह रहे थे कि “गुलाब जामुन नहीं तो क्या! जामुन तो हुँ। तुम्हारे लिए मैं ही बना हुँ”। बस इसी तरह मेरा मीठा-मीठा मिठाइयों की लड़ाई का सपना टूट गया।

– लता मक्कड़

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