आयी ना हँसी ये शब्द सुनकर।
बस मजा आ जाता हैं पंचायती करने में, बड़ा सुरूर हैं इस शब्द में कौन क्या कर रहा हैं, क्यों और कैसे कर रहा हैं?
वैसे किसी काम में दिमाग़ चले ना चले, पंचायती में दिमाग़ 100 की स्पीड से दौड़ने लगता हैं। गर्मी आ जाती हैं शरीर में और जिज्ञासा हिलोरें लेने लगती हैं। जिसके बारे में बात करनी हैं जानना हैं वो कोई भी हो, भले ही कोई दूर-दूर का रिश्ता। बस ये सच हैं की कुछ रिश्ता होना चाहिये। हमें एनर्जी देती हैं पंचायती, दिमाग़ को हमेशा जवान रखती हैं। तो फिर क्या! उदास मत रहो, ढ़ुढ़ लो कोई बहाना, अपने को मशरूफ़ रखने का, पंचायती करने का। समय पंख लगाकर उड़ने लगेगा और उदासी जो छूमंतर हो जायेगी। फिर मन भी कुछ ना कुछ ढूँढता रहेगा पंचायती करने के लिये। खुश रहने के लिए बस करते रहिए पंचायती।
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