मैं हर पल, हर घड़ी दरवाजे के उस पार देखती रहती हूँ, बस एक झलक मिल जाए उसकी। कमर में दुपट्टा ठूँसें, एक घर से दूसरे घर की ओर दौड़ती हुई मेरी प्यारी बाई, जिसे मैं गरम-गरम नाश्ते के साथ चाय का प्याला अपने हाथों से पेश करूं, और अड़ोस-पड़ोस की ताज़ातरीन गपशप सुनूं।
फ़र्श पर पड़े पैरों के निशान, रसोई की सिंक में उल्टे पड़े बर्तन, हर चीज़ मुझे बस उसकी याद दिलाते हैं।
वही तो है जो वाकई में मेरे दिल की बात समझती है। घर में कदम रखते ही प्यार से कहती है, “चिंता न करो दीदी, आप आराम करो, मैं सब संभाल लूँगी।” उसकी ये बातें सुनकर मेरी आँखों में आँसू आ जाते हैं—इतना प्यार, इतना अपनापन!
मुझे तो कभी कभी मेरे पति से भी ज़्यादा अपनी लगती है हमारी बाई। उसका इंतज़ार मेरे लिए पति के इंतज़ार से भी खास होता है।
अपनी प्यारी बाई की छुट्टी के ग़म में डूबी, लता मक्कड़
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