दूध से दो-दो हाथ

हमेशा से दूध से मेरी लड़ाई रही है। वो मुझे घूरता रहता है, और मैं उसे। आज ही की बात ले लो, सुबह-सुबह की भागदौड़ में दूध को पतीले में चढ़ाकर दूसरे काम निबटा रही थी। मेरा पूरा ध्यान उसी पर था। वो मुझे, और मैं उसे देख रही थी। मैंने भी ये खेल ख़त्म करने की ठानी क्योंकि वो कभी भी धोखा देकर बाहर आ सकता था।
वो मौका ताड़ ही रहा था क्यूँकि जैसे ही मैं एक second के लिए पलटी, वो बाहर। बाप रे! गैस बंद करते-करते भी रायता फैल गया।
वो मुस्कुराते हुए बोला, “खुद को बड़ा होशियार समझती हो, हमेशा मेरे सिर पर नाचती रहती हो, मैं अंदर ही अंदर जलता रहता हूँ लेकिन खुद तो इधर-उधर मँडराती रहती हो, आ गया बाहर कर लो जो बन पड़े।” यह कहकर जोर-जोर से बड़ा सा मुँह खोल के हँसने लगा।
“चलो इसको कल देखती हूँ।” ये सोचकर खुद को समझा लिया, और अगले दिन के लिये स्वयं को फिर से तैयार कर लिया, दूध से दो- दो हाथ करने के लिये।

आपकी चिड़चिड़ी,
-लता मक्कड़

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