गोल-गोल गोलगप्पे, तीखे-तीखे पानी से भरपूर आह! मुँह में जाते ही बवंडर सा आ जाता है। तरह तरह के स्वाद से मन झंकारित हो उठता है, रोम रोम आनंदित हो जाता हैं। इतनी ही खूबियाँ अगर हममें हो जाये तो मज़ा आ जाये। जो भी मिले जब भी मिले हमसे, तो बस मन प्रसन्न हो जाए सामने वाले का। उसके मन में भी वैसे ही रस फूट जाये, जैसे गोलगप्पे के मुँह में जाते ही आपके मुँह में फूट जाता हैं। खट्टा, मीठा, तीखा- बस प्यार भी यदि ऐसा हो जाये तो रिश्तों के रंग ही बदल जाये। क्यों ना हम भी गोलगप्पे बन जाये?
रसभरे, झंकारित व सबके प्रिय।
Leave a Reply