ख़स्ता कचौड़ी

मेहमान आने वाले थे, और मैं बड़े ही मनोयोग से सारा प्यार और स्वाद डालकर कचौड़ियाँ बना रही थी। सभी कचौड़ियाँ अपनी सुगंध के गुरूर से भरी हुई थीं। जैसे ही कचौड़ियों ने तेल में डुबकी लगाई, उनमें कुछ तो अकड़-अकड़ कर फूली नहीं समा रही थीं। मानो कह रही हों, “हमसे स्वादिष्ट और खूबसूरत कोई है ही नहीं।” परंतु कुछ ऐसी भी थीं, जिनका तेल में डुबकी लगाते ही मुँह खुल गया, मानो ज़ोर ज़ोर से हँस-हँस कर लोटपोट हो रही हों।

खैर, जैसे ही वो मेहमानों को परोसी गईं, सबने गरमागरम फूली-फूली कचौड़ी उठा ली। मेरे हिस्से में आई वो मुस्कुराती खुले मुँह वाली कचौड़ी, जिसका तीखा और चाटकेदार होने का गुरूर हँसते-हँसते अपने अंदर से तेल में बाहर निकल गया था। बस बचा था तो सुगंध से भरा सोंधा-सोंधा सा खोल, जो हँसने-हँसाने के लिए आपके सामने था एक ख़स्ता कचौड़ी के रूप में।

स्वाद से प्यार को जोड़ती
लता मक्कड़

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