टमाटर ने आज बता दिया कि हर एक का दिन आता हैं, कभी फर्श पर, तो कभी अर्श पर। ये बचपन का सीसॉ वाला खेल हैं भाई। आज ही देख लो टमाटर की वैल्यू। धोकर, पोंछकर बड़े प्यार से टोकरी में सजा रही थी कि इतने में एक टमाटर को शरारत सूझी और वो लुड़क कर फ्रिज के नीचे चला गया, और मुझे चिढ़ाने लगा कि “जब सस्ता था, तो मेरी कभी परवाह ही नहीं की, अब देखो कैसे प्यार से देख रही हो। मरती क्या ना करती, बड़े जतन से घुटने के बल बैठकर टमाटर को चिमटें से अपने पास बुलाने का प्रयास करने लगी। वो तो नहीं आया पर घुटने ने ज़ोर से चीख मारी। हिम्मत करके टमाटर को वहाँ से निकाला और उठने के लिए जुगत लगा ही रही थी कि तब तक बेचारा टमाटर मेरे घुटने के नीचे आ गया। टमाटर के रक्तबीज इधर-उधर बिखरें पड़े थे। बहुत दुःख हुआ टमाटर के लिये। बस अभी-अभी साफ़-सफाई करके, बड़े ही भारी मन से पोस्ट लिख पा रही हूँ।
ये पोस्ट सत्य पर आधारित हैं।
दिवंगत टमाटर🍅
शोकाकुल लता मक्कड़।
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