
मंडी की महासभा
आज जब मैं सब्ज़ी मंडी गई, तो दंग रह गई स्त्री-शक्ति की महिमा को देखकर—भिंडी, गोभी, फलियाँ, लौकी, तुरई, ककड़ी, मिर्ची, हर तरफ़ सीधी-सादी हरियाली बिखेरती।
गोभी जैसी खिलखिलाती सब्ज़ियों को देखकर मैं मुस्कुरा रही थी, महिलाओं के जादू पर इतरा रही थी।
तभी तीखी मिर्ची ने अपनी आँख दबाई और इठलाते हुए बोली,
“छूकर देखो मुझे, मन भर आँसू रुलाती हूँ।
मन खट्टा हो जाए अगर मेरा, तो छठी का दूध याद दिलाती हूँ।”
रंग-रूप लुभावना है, पर स्वभाव बड़ा जलाने वाला है।” उसका तीव्र रूप देखकर आँखों में सरूर छा गया।
मैं भी अकड़ती हुई आगे चल पड़ी, घमंड से चूर मेरी नज़र पुरुष वर्ग की सब्ज़ियों को ढूँढ रही थी।
करेला—रूप में खुरदरा, स्वभाव से कड़वा! ऊँह, एक तो करेला, ऊपर से नीम चढ़ा। सच ही तो कहते हैं लोग।
तभी बैंगन ने मेरी चतुराई देख मुँह से सीटी बजाई, अपने सिर पर रखे ताज को दाएँ-बाएँ घुमाया और बोला,
“हर कोई मुझे थाली का बैंगन बुलाता है।
मैं क्या करूँ? हर कोई मुझे भाता है,
और मुझे भी किसी एक का साथ नहीं सुहाता है!
जहाँ देखूँ रंगों और प्यार का मेला है,
वजन देखकर थाली का शीश झुकाता हूँ,
इसीलिए थाली का बैंगन कहलाता हूँ।”
टमाटर कहाँ पीछे रहने वाला था। गुस्से से था लाल, पर ख़ूबसूरती के अहंकार में, वे भी था बेहाल।
दिल चाहा, घमंड छोड़ भर लूँ थैले में। बस, यही तो प्रकृति का प्यार है। सब्ज़ी मंडी में सब्ज़ी का अंबार है, हर सब्ज़ी गुणों का भंडार है।
हर सब्ज़ी नारी हो या पुरुष, सबकी महिमा अपार है। इसीलिए घमंड न करें अपनी चतुराई पर। सब्ज़ी मंडी तो सब्ज़ियों का मेला है-स्वाद और स्वास्थ्य का खेला है।
सब्ज़ियों की संसद से विदा लेती,
लता मक्कड़
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