आप ही बताएं कैसे करूं नियंत्रण अपनी इंद्रियों पर। सुबह-सुबह घर के बग़ीचे में योगा कर रही थी, योगा टीचर बड़ी कोशिश से मुझे साँसों पर नियंत्रण करना सीखा रही थी। मैं भी पुरज़ोर कोशिश कर रही थी, साँसों का तालमेल बैठाने की।
योगा टीचर बार-बार नाक से साँस लेने को और मुँह से छोड़ने को बोलती। विडम्बना देखो, जैसे ही मैंने नाक से साँस खींची, पड़ोस से आने वाली पराठों की सुगंध मेरी नाक में अटक कर रह गयी। अब क्या? मेरी अनुलोम-विलोम की प्रक्रिया तेज हो गयी, बार-बार मैं साँस छोड़ना भूलकर, बस गहरी साँस लेने की कोशिश कर रही थी। उस ख़ुशबू को अंतर्मन में भर रही थी। भूख तो बढ़ गयी पर साँसों का नियंत्रण छूट गया, खाने की कल्पना में दिल गोते खाने लगा। बड़ी मशक्कत से वो एक घंटा बिताया।
योगा टीचर के प्रस्थान करते ही मेरे शरीर की फुर्ती देखने लायक़ थी। सीधी दौड़ कर रसोई घर में जाकर रुकी। अब आप ही बताएं, नियंत्रण इंद्रियों पर करूं या पड़ोस से आने वाली ख़ुशबू पर?
जीभ और दिमाग़ के बीच समझौते का प्रयास करती,
लता मक्कड़
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