दिवाली की सफ़ाई

पिछले हफ्ते की दिवाली सफ़ाई ने मन को उलझन में डाल दिया था। सपने में खुद को देवी समझ रही थी, चार हाथ देखकर अकड़ रही थी।
जब देखा हाथों में कपड़ा, झाड़ू, डंडा और पोछा, तो AC में भी पसीना आ गया, अहसास हो गया कि देवी जी, दिवाली आ गयी है।
पर कभी-कभी सफ़ाई में कुछ ऐसा मिल जाता है जो आपने सोचा भी नहीं होता। सफ़ाई के दौरान मुझे मिली एक धूल खाती, सालों पुरानी डायरी। डायरी में सूखा गुलाब, मोर पंख और कुछ इत्र की सी ख़ुश्बू थी। काँपते हाथों से डायरी खोली, चश्मा कस के साफ़ किया और धड़कते दिल से पहला पन्ना पढ़ा। शब्द मोती से जड़े थे, और हर शब्द से सौ-सौ अरमान जाग रहे थे।

ख़त किसी लड़की के लिए लिखा था, प्यार और मनुहार से भरा था। पन्ना पढ़ते हुए साँसों का तालमेल बिठा रही थी, और रूआंसे मन से खुद ही बड़बड़ा रही थी कि धोखा हुआ मेरे साथ! एक ही साँस में सारा पन्ना पढ़ डाला, और आख़िर में जाकर समझ में आया कि जिस बाला के नाम वे ख़त था, उसका नाम ‘कंचन’ बाला था, और ये उन दिनों का ख़त था जब मेरे पतिदेव मुझे उस नाम से बुलाते थे।

छप्पन की आयु में भी बडा सुकून मिला! सच में प्यार और शक की कोई उम्र नहीं होती। जो बात आज भी दिल धड़का दे, सोचिए एक डायरी में कितना दम होगा।
बस, उसी क्षण समझ गई कि इस बार की दिवाली सफ़ाई केवल एक काम नहीं, बल्कि यादों को फिर से जीने का मौका है।

तो अगली बार जब आप सफ़ाई करें, हो सकता है आप भी कुछ भूली-बिसरी यादों का खज़ाना पा जाएं, जैसे मैंने इस दिवाली पाया।

आप सभी को दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाएँ।

अगली दिवाली की खोज का इंतज़ार करती,
लता मक्कड़ (कंचन)

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