अल्हड़ सी है मेरी चाय, पुराने से स्टोव पर अधजले हत्थेदार बर्तन में खौलती, उबलती बार-बार बाहर आने को आतुर हर गली नुक्कड़ पर चाय की दुकान में। अदरक, इलायची के साथ मिलकर एक कुल्हड़ या कप से सबके दिलों में उतरने वाली। देखो ना, इस अल्हड़ सी चाय के प्रेम में तो Parle-g बिस्किट भी पूरा डूब जाता है। मेरी साँवली सलोनी बिना मेकअप वाली चाय अमीर-गरीब का भेद नहीं जानती, जानती है तो बस तुम्हारी थकान को प्यार से अपने आग़ोश में समेटना, कुछ पल का सुकून देना। मेरी सलोनी सी चाय को हर कोई अपने स्वभाव से बनाता है, कोई कड़क, तो कोई मीठी, तो कोई फीकी। किसी को इलायची वाली पसंद है, किसि को कड़क मसाला डाल के, तो कोई अदरक को कूट-कूट कर चाय के साथ गठबंधन बनाता है।
जो जैसा है उसी के अनुसार अपना रूप बदल लेती है, सबके दिलों में समा जाती है- हमारी ये अल्हड़ सी चाय। अपनी शाम की चाय का इंतज़ार करती, लता मक्कड़
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